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धन्व
Meanings: 8; in Dictionaries: 6
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bow
Meanings: 17; in Dictionaries: 8
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blowout dune
Meanings: 1; in Dictionaries: 1
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dune complex
Meanings: 1; in Dictionaries: 1
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dune lake
Meanings: 1; in Dictionaries: 1
Type: WORD | Rank: 0.1461402 | Lang: NA
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dune ridge
Meanings: 1; in Dictionaries: 1
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dune sand
Meanings: 1; in Dictionaries: 1
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stabilized dune
Meanings: 1; in Dictionaries: 1
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longitudinal dune
Meanings: 1; in Dictionaries: 1
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migratory dune
Meanings: 1; in Dictionaries: 1
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parabolic dune
Meanings: 1; in Dictionaries: 1
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seif dune
Meanings: 1; in Dictionaries: 1
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transverse dune
Meanings: 1; in Dictionaries: 1
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embryonic dune
Meanings: 1; in Dictionaries: 1
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coastal dune
Meanings: 1; in Dictionaries: 1
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wandering dune
Meanings: 1; in Dictionaries: 1
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परिप्रधन्व्
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dune
Meanings: 8; in Dictionaries: 6
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धान्वपत
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धन्वदुर्ग
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षड्दुर्ग
Meanings: 1; in Dictionaries: 1
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धनुर्दुर्ग
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धन्वयवास
Meanings: 4; in Dictionaries: 2
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धान्व
Meanings: 3; in Dictionaries: 2
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धन्व्
Meanings: 1; in Dictionaries: 1
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मण्डल ९ - सूक्तं १०५
ऋग्वेद फार प्राचीन वेद आहे. यात १० मंडल आणि १०५५२ मंत्र आहेत. ऋग्वेद म्हणजे ऋषींनी देवतांची केलेली प्रार्थना आणि स्तुति.
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जय मृत्युंजय - आणा निज गोमंतक जिंकुनी घर...
गोपाळ गोडसे कवींनी मोठ्या बेहोष जिव्हाळ्याने आणि उन्मादक रसिकतेने `जय मृत्युंजय’ या कवितासंग्रहात स्वातंत्र्यवीर सावरकरांचे वर्णन केले आहे.
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पञ्चमप्रपाठकः - पञ्चमी दशतिः
यज्ञ, अनुष्ठान आणि हवन संबंधीचे मन्त्र सामवेदात सांगितले आहेत. सर्व वेदांमध्ये हा सर्वात छोटा वेद आहे.
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मण्डल ९ - सूक्तं ११०
ऋग्वेद फार प्राचीन वेद आहे. यात १० मंडल आणि १०५५२ मंत्र आहेत. ऋग्वेद म्हणजे ऋषींनी देवतांची केलेली प्रार्थना आणि स्तुति.
Type: PAGE | Rank: 0.01826753 | Lang: NA
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मण्डल १ - सूक्तं ३५
ऋग्वेद फार प्राचीन वेद आहे. यात १० मंडल आणि १०५५२ मंत्र आहेत. ऋग्वेद म्हणजे ऋषींनी देवतांची केलेली प्रार्थना आणि स्तुति.
Type: PAGE | Rank: 0.01826753 | Lang: NA
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धन्वन्
Meanings: 19; in Dictionaries: 3
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धन्विन्
Meanings: 27; in Dictionaries: 4
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षष्ठप्रपाठकः - पञ्चमी दशतिः
यज्ञ, अनुष्ठान आणि हवन संबंधीचे मन्त्र सामवेदात सांगितले आहेत. सर्व वेदांमध्ये हा सर्वात छोटा वेद आहे.
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मण्डल ९ - सूक्तं ९७
ऋग्वेद फार प्राचीन वेद आहे. यात १० मंडल आणि १०५५२ मंत्र आहेत. ऋग्वेद म्हणजे ऋषींनी देवतांची केलेली प्रार्थना आणि स्तुति.
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मण्डल १० - सूक्तं ८९
ऋग्वेद फार प्राचीन वेद आहे. यात १० मंडल आणि १०५५२ मंत्र आहेत. ऋग्वेद म्हणजे ऋषींनी देवतांची केलेली प्रार्थना आणि स्तुति.
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मण्डल १० - सूक्तं ८६
ऋग्वेद फार प्राचीन वेद आहे. यात १० मंडल आणि १०५५२ मंत्र आहेत. ऋग्वेद म्हणजे ऋषींनी देवतांची केलेली प्रार्थना आणि स्तुति.
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षष्ठप्रपाठकः - प्रथमोऽर्द्धः
यज्ञ, अनुष्ठान आणि हवन संबंधीचे मन्त्र सामवेदात सांगितले आहेत. सर्व वेदांमध्ये हा सर्वात छोटा वेद आहे.
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उत्तरस्थान - अध्याय २०
आयुर्वेदातील अष्टांग हृदय प्रसिद्ध ग्रंथ आहे. याचे रचनाकार आहेत, वाग्भट. या ग्रंथाचा रचनाकाल ई.पू.५०० ते ई.पू.२५० मानतात. या ग्रंथात औषधि आणि शल्यचिकित्सा दोन्हींचाही समावेश आहे.
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land
Meanings: 44; in Dictionaries: 11
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अध्याय ४ - भाग २
महर्षि पाणिनी द्वारा रचित अष्टाध्यायी हा संस्कृत व्याकरणावरील एक अत्यंत प्राचीन ग्रंथ आहे, जो ई.पू. ५००व्या शतकात रचला गेला.
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मरु
Meanings: 58; in Dictionaries: 9
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धन्वन्तरि
Meanings: 24; in Dictionaries: 6
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चतुर्थप्रपाठकः - प्रथमोऽर्द्धः
यज्ञ, अनुष्ठान आणि हवन संबंधीचे मन्त्र सामवेदात सांगितले आहेत. सर्व वेदांमध्ये हा सर्वात छोटा वेद आहे.
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रामस्तुतिः
महाराष्ट्रकविवर्य श्रीमयूरविरचिते ग्रन्थ ‘ संस्कृतकाव्यानि ’
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सूत्रस्थान - अध्याय २०
आयुर्वेदातील अष्टांग हृदय प्रसिद्ध ग्रंथ आहे. याचे रचनाकार आहेत, वाग्भट. या ग्रंथाचा रचनाकाल ई.पू.५०० ते ई.पू.२५० मानतात. या ग्रंथात औषधि आणि शल्यचिकित्सा दोन्हींचाही समावेश आहे.
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कल्पस्थान - अध्याय ६
आयुर्वेदातील अष्टांग हृदय प्रसिद्ध ग्रंथ आहे. याचे रचनाकार आहेत, वाग्भट. या ग्रंथाचा रचनाकाल ई.पू.५०० ते ई.पू.२५० मानतात. या ग्रंथात औषधि आणि शल्यचिकित्सा दोन्हींचाही समावेश आहे.
Type: PAGE | Rank: 0.007307011 | Lang: NA
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उत्तरस्थान - अध्याय ३९
आयुर्वेदातील अष्टांग हृदय प्रसिद्ध ग्रंथ आहे. याचे रचनाकार आहेत, वाग्भट. या ग्रंथाचा रचनाकाल ई.पू.५०० ते ई.पू.२५० मानतात. या ग्रंथात औषधि आणि शल्यचिकित्सा दोन्हींचाही समावेश आहे.
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कल्पस्थान - अध्याय ४
आयुर्वेदातील अष्टांग हृदय प्रसिद्ध ग्रंथ आहे. याचे रचनाकार आहेत, वाग्भट. या ग्रंथाचा रचनाकाल ई.पू.५०० ते ई.पू.२५० मानतात. या ग्रंथात औषधि आणि शल्यचिकित्सा दोन्हींचाही समावेश आहे.
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आदिपर्व - अध्याय सदतिसावा
मोरेश्वर रामजी पराडकर (१७२९–१७९४), हे महाराष्ट्रात मोरोपंत अथवा मयूर पंडित नावाने ओळखले जातात.
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नववा स्कंध - अध्याय ४
’ श्रीमद्भागवतमहापुराणम्’ ग्रंथात ज्ञान, वैराग्य व भक्ति यांनी युक्त निवृत्तीमार्ग प्रतिपादन केलेला आहे, अशा या श्रीमद्भागवत महापुराणाचे भक्तिने श्रवण, पठन आणि निदिध्यासन करणारा मनुष्य खात्रीने वैकुंठलोकाला प्राप्त होतो.
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